लेखनी प्रतियोगिता -20-Sep-2022 प्रेम का अस्तित्व वृक्ष के समान
शीर्षक-प्रेम एक वृक्ष के समान
विषय-प्रेम का अस्तित्व
प्रेम होता वृक्ष के समान,
जिसका जीवन पर पड़ता प्रभाव।
वृक्ष के लिए उगाते बीज,
प्रेम के लिए होती नींव।
जब तक ना मिले वृक्ष को सिंचाई,
प्रेम को भी कैसे मिले भलाई।
जैसे बोयेंगे हम बीज,
वैसे ही होगी वृक्ष की रीत।
प्रेम में ही जैसे बोये बीज,
वैसी होगी सबकी प्रीत।
वृक्ष देता घनी छाया,
प्रेम बनाता सबको अपना।
वृक्ष की भांति रखो प्रेम का अस्तित्व,
मधुर मधुर वाणी से प्रेम बनेगा सात्विक।
देखी हमने प्रेम की माया,
कृष्ण राधा का प्रेम जग में छाया।
प्रेम है ईश्वरीय देन,
ना रखो किसी से बैर।
शरीर है अपना नश्वर,
फिर क्यों करते हो नफरत।
प्रेम दिमाग से नहीं बसता,
दिल में बनाता है आशियाना।
जिसके दिल में प्रेम बसा,
प्रेम का अस्तित्व उसने समझा।
प्रेम में ना करो अहंकार,
अहंकार का पथ होता अंधकार।
अंधकार से होता प्रेम का विनाश,
रिश्तो में हो जाती खटास।
प्रेम का अस्तित्व है बचाना,
प्रेम का पाठ है सबको समझाना।
प्रेम का अस्तित्व है विराट,
करो सभी प्रेम को स्वीकार।
नफरत की डोर लेकर,
ना चलो तुम सभी आज।
क्या पता कल का,
कहां मैं कहां तुम सब।
Raziya bano
21-Sep-2022 09:27 PM
बहुत खूब
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Reena yadav
21-Sep-2022 05:10 PM
👍👍
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Punam verma
21-Sep-2022 08:51 AM
Nice
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